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भारत के वनों का भौगोलिक वर्गीकरण एवं वितरण

भारत के वनों का भौगोलिक आधार पर वर्गीकरण एवं वनों का राज्यवार वितरण।
भारत के वनों का भौगोलिक वर्गीकरण एवं वितरण

सामान्य परिचय:

  • वन अर्थात् विभिन्न प्रजातियों के पेड़ पौधों का वह समूह जो अलग-अलग प्रदेशों में वहां के भौतिक वातावरण, जलवायु तथा मिट्टी आदि से प्रभावित होकर प्राकृतिक रूप से उगते है।
  • दुनिया भर में कई वन क्षेत्र पाये जाते है जिनमे अमेजन, कांगो इत्यादि।
  • विश्व में ज्यादातर सघन वन विषुवत रेखा के आसपास वाले क्षेत्रों में पाये जाते है।
  • जलवायु, मृदा, पर्यावरण आदि के आधार पर अलग अलग प्रकार के वन सम्पूर्ण विश्व में पाये जाते है।

भारतीय वनों का भौगोलिक वर्गीकरण:

  • भारत में स्थलाकृतिक असमानता, विभिन्न जलवायु दशाओं के कारण कई प्रकार के वन देखने को मिलते है।
  • फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया ने भारत में लगभग 47,000 प्रजातियों की वनस्पति को खोजा है।
  • इन 47 हजार में से लगभग 5,000 पेड़ पौधों ऐसे है जो केवल भारत ही पाये जाते है।
  • भौगोलिक आधार पर भारत के वन को पांच भागों में बांटा गया है-

1. उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन-

  • ऐसे वन भारत में उन स्थानों पर पाये जाते है जहां औसत वार्षिक वर्षा 200 सेंटीमीटर से अधिक हो।
  • ये वन सघन और हरे-भरे होते है।
  • इसके वृक्ष विषुवत रेखीय वनों के वृक्षों की प्रजाति के होते है।
  • वृक्षों की लंबाई लगभग 60 मीटर से भी ज्यादा होती है।
  • इन वनों के प्रमुख वृक्ष ताड़, महोगनी, बेंत, सिनकोना आदि होते है।
  • भारत में इन वनों का विस्तार पश्चिमी घाट और पूर्वी हिमालय (महाराष्ट्र, केरल एवं असम) प्रदेशों में है।

2. मानसूनी पर्णपाती वन-

  • भारत में इस प्रकार के वन अधिकतर उन स्थानों में मिलते है जहां वर्षा की मात्रा 50 सेंटीमीटर से 200 सेंटीमीटर तक होती है।
  • ये वन सदाबहार वन की भांति सघन नही होते है।
  • वृक्षों की ऊंचाई भी इन वनों में कम होती है, औसतन 30 से 50 मीटर से अधिक लंबे नही होते है।
  • गर्मी के मौसम आने से पहले वृक्षों के पत्ते झड़ने शुरू हो जाते है।
  • मानसूनी वन के प्रमुख वृक्ष साल, सागौन, एबोनी, आम, हल्दू, सीसम, चंदन, सेमल इत्यादि है।
  • इन वनों का विस्तार दक्कन के पठार, मध्य भारत और उप हिमालय पर्वत क्षेत्रों में है।
  • मानसूनी वन को दो उप भागों में बांटा गया है-

1. आर्द्र मानसूनी वन-

  • इन्हे पतझड़ वन भी कहते है, क्योंकि ये अपनी प्रकृति के अनुकूल ग्रीष्म काल में एक साथ पत्तियां गिरा देते है।
  • इन वनों के वृक्षों की ऊंचाई 30 से 40 मीटर तक होती है।
  • भारत में इसका विस्तार लगभग 70% भाग पर है।
  • प्रमुख रूप से छत्तीसगढ़, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल आदि राज्यों में फैला है।
  • साल, सागौन, चंदन, आम के अलावा गुलर, जामुन, रीठा, बेर, पलास, महुआ, बरगद, पीपल आदि वृक्ष प्रमुख रूप से पाये जाते है।

2. शुष्क मानसून वन-

  • यह वन 50 से लेकर 100 सेंटीमीटर तक वर्षा वाले क्षेत्रों में 
  • पाये जाते है।
  • ये वन आर्द्र मानसूनी वनों के पश्चिमी भाग पर मिलते है, क्योंकि वर्षा की मात्रा सामान्यतः पूर्व से पश्चिम की ओर कम होती है।
  • इन वनों के वृक्षों की विशेषताएं यह है कि इनकी जड़े धरातल के काफी गहराई तक होती है जिससे इन्हे पर्याप्त मात्रा में जल मिलते रहता है।
  • ये वन पंजाब, हरियाणा, पूर्वी राजस्थान, पश्चिम मध्य प्रदेश, मध्य तथा दक्षिणी उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक राज्यों में पाये जाते है।
  • प्रमुख वृक्ष आम, जामुन, महुआ, शीशम है तथा अन्य वृक्षों में बाबुल, रीठा, बेर, खजूर, नीम आदि है।

3. मरुस्थलीय वन-

  • मरुस्थलीय वन लगभग 50 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में पाये जाते है।
  • वर्षा कम होने के कारण वृक्षों की पत्तियां और लंबाई कम होती है, सामान्यतः 5 मीटर तक के लंबे वृक्ष मिलते है।
  • ये वृक्ष कम पत्ते और कंटीले होने के कारण झाड़ियों के रूप में पाये जाते है।
  • पंजाब, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश आदि राज्यों के शुष्क भागों में इस प्रकार के वन देखने को मिलते है।
  • बाबुल, रामबांस, खजूर, नागफनी, खैर आदि मुख्य वृक्ष है।

4. डेल्टाई वन-

  • इन्हे दलदली वन भी कहा जाता है क्योंकि ये वन समुद्र तटीय भागों में ज्वार के पानी ऊपर चढ़ने से धरातल हमेशा दलदल हो जाता है।
  • इन वनों के मुख्य वृक्ष मैनग्रोव, सुंदरी, ताड़, नारियल है।
  • गंगा नदी के सबसे बड़े डेल्टा को सुंदर वन सुंदरी वृक्ष की प्रधानता के कारण ही कहा जाता है।
  • महानदी, कृष्णा, गोदावरी, कावेरी (पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु के तटीय भाग) आदि नदियों के डेल्टाई भाग में ये वन पाये जाते है।

5. पर्वतीय वन-

  • भारत के हिमालय पर्वत श्रृंखला में 1 हजार मीटर से 5 हजार मीटर की ऊंचाई पर विशेष प्रकार की वनस्पतियां पायी जाती है जिनमे ऊंचाई के अनुसार परिवर्तन होता है।
  • 1 हजार से 2 हजार मीटर की ऊंचाई पर ओक, पाइन और सागौन से वृक्ष मिलते है।
  • 2,000 से 2,500 मीटर की ऊंचाई पर देवदार के वृक्ष पाये जाते है।
  • 2,500 से 3,000 मीटर के मध्य छोटी झाड़ियां मिलती है।
  • 5 हजार से अधिक ऊंचाई पर काई जैसी वनस्पतियां पायी जाती है।
भारतीय वनों का भौगोलिक वर्गीकरण
भारतीय वनों का भौगोलिक वर्गीकरण

भारत में वनों का वितरण:

  • भारत वनों के वितरण में पर्याप्त असमानता है।
  • वनों के वितरण में असमानता होने के कई कारण है जिनमे से सबसे प्रमुख कारण भारत की जलवायु में भिन्नता है।
  • भारत में वनों के क्षेत्र में लगातार परिवर्तन हो रहा है अर्थात् वन क्षेत्र कहीं घट या बढ़ रहा है।
  • भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग द्वारा प्रति एक वर्ष के अंतराल में वनों का सर्वेक्षण किया जाता है और वन क्षेत्रफल के आंकड़े प्रकाशित किये जाते है।
  • नीचे तालिका में 2011 से 2021 के आंकड़े दिए जा रहे है-
वर्ष कुल वन क्षेत्र (वर्ग कि.मी.) वन क्षेत्र (%)
2011 6,92,027 21.05%
2013 6,97,898 21.23%
2015 7,01,673 21.34%
2017 7,08,273 21.54%
2019 7,12,249 21.67%
2021 7,13,789 21.71%
  • ऊपर दिए आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारत का वन क्षेत्र बहुत धीमी गति से वृद्धि हो रहा है।
  • 2011 में 21.05% वन सम्पूर्ण भारत में था जो 2021 में 21.71% रही अर्थात् केवल 0.66% की वृद्धि पिछले 10 वर्षों में हुई।
  • भारत में 1988 के राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार 33% वन क्षेत्र होना आवश्यक है।

भारत में वनों का राज्यवार वितरण:

  • वर्तमान भारत में कुल राज्यों की संख्या 28 है। केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या 8 है।
  • भारत के इन सभी राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों में वन क्षेत्र में काफी भिन्नता है।
  • कई राज्य ऐसे जहां आवश्यता से बहुत अधिक वन क्षेत्र है जैसे लक्षद्वीप 90.33%, मिजोरम 84.53, अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में 81.75% इत्यादि।
  • इसी प्रकार कई ऐसे राज्य है जहां वन क्षेत्र आवश्यकता से बहुत कम है जैसे लद्दाख 1.35%, पंजाब 3.67%, हरियाणा 3.63% इत्यादि।
  • वनों क्षेत्रफल में भिन्नता का प्रमुख कारण धरातलीय स्वरूप तथा जलवायु है।
  • भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग के 2021 के आंकड़ों के अनुसार भारत में कुल 7,13,789 वर्ग किलोमीटर पर वनों का विस्तार है।
  • जबकि भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर है।
  • नीचे दिए आंकड़ों में राज्यवार वन क्षेत्र के आंकड़े वर्ग किलोमीटर में दिए जा रहे है जो अवरोही क्रम में है-
क्रमांक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश वन क्षेत्र (वर्ग कि. मी.) वन क्षेत्र (%)
1. मध्य प्रदेश 77,493 25.14%
2. अरुणाचल प्रदेश 66,431 79.33%
3. छत्तीसगढ़ 55,717 41.21%
4. ओड़िशा 52,156 33.5%
5. महाराष्ट्र 50,798 16.51%
6. कर्नाटक 38,730 20.19%
7. आंध्र प्रदेश 29,784 18.28%
8. असम 28,312 36.09%
9. तमिलनाडु 26,419 20.31%
10. उत्तराखंड 24,305 45..44%
11. झारखंड 23,721 29.76%
12. जम्मू-कश्मीर 21,387 39.15%
13. केरल 21,253 54.7%
14. तेलंगाना 21,214 18.93%
15. मिजोरम 17,820 84.53%
16. मेघालय 17,046 76%
17. पश्चिम बंगाल 16,832 18.96%
18. राजस्थान 16,655 4.87%
19. मणिपुर 16,598 74.34%
20. हिमाचल प्रदेश 15,443 27.73%
21. गुजरात 14,926 7.61%
22. उत्तर प्रदेश 14,818 6.15%
23. नागालैंड 12,251 73.9%
24. त्रिपुरा 7,722 73.64%
25. बिहार 7,381 7.84%
26. अंडमान निकोबार 6,744 81.75%
27. सिक्किम 3,341 47.08%
28. लद्दाख 2,272 1.35%
29. गोवा 2,244 60.62%
30. पंजाब 1,847 3.67%
31. हरियाणा 1,603 3.63%
32. दादरा व नगर हवेली एवं दमन व दीव 227.75 37.83%
33. दिल्ली 195 13.15%
34. पुडुचेरी 53.3 10.88%
35. लक्षद्वीप 27.1 90.33%
36. चण्डीगढ़ 22.88 20.07%

निष्कर्ष:

  • वर्तमान समय में वन विनाश एक गंभीर समस्या है।
  • वनों में आग लगना, वनों की अत्यधिक कटाई, वृक्ष रोपण के प्रति जागरूक का अभाव आदि कारणों से भारत के वन क्षेत्र में कम हो रहे है।
  • हमे आवश्यकता कुल भौगोलिक क्षेत्रफल पर 33% वन की है जबकि 2021 के अनुसार केवल 21.71% क्षेत्र पर ही वन है, ये चिंताजनक है।
  • मानव केवल अपने सुख सुविधाओं के लिए चाहे वह खनिजों के उत्खनन के लिए हो या उद्योग स्थापना के लिए या जलाशय के निर्माण आदि के लिए हो कहीं न कहीं इससे बड़े स्तर पर वनों की कटाई होने से इसका क्षेत्र कम हो रहा है।
  • वन विनाश का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव वन्य प्राणियों पर पड़ता है, वे अपना आश्रय स्थल खो देते है।
  • आज आवश्यकता है कि वन विनाश को रोकने के लिए लोगों को जागरूक किया जाए तभी एक स्वस्थ पारिस्थितिकीय की स्थापना हो पाएगी।

Source:
fsi.nic.in, wikipedia.org

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Namaste! I'm sudhanshu. I have done post graduation in Geography. I love blogging on the subject of geography.

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