पृथ्वी की आयु:
- पृथ्वी की आयु को निर्धारित करना असंभव है क्योंकि इसकी उत्पत्ति बहुत पहले हुई थी और इसका आधुनिक रूप करीब 4.54 अरब साल पहले तक पहुंच गया था।
- हालांकि, पृथ्वी के विभिन्न तत्वों जैसे पत्थर, पानी और वायु की उम्र को अलग-अलग ढंग से निर्धारित किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए, पृथ्वी पर पाये जाने वाले पुरातत्वीय उपकरणों जैसे पत्थरों की उम्र को रेडियोमेट्रिक तकनीक का उपयोग करके मापा जा सकता है।
- इस तकनीक के अनुसार, पत्थरों की उम्र करीब 4.5 अरब साल से लेकर कुछ करोड़ साल तक हो सकती है।
- इसी तरह, पृथ्वी पर पानी और वायु की उम्र को भी उनके संगठन और संरचना के आधार पर निर्धारित किया जाता है।
पृथ्वी की आयु में निर्धारित करने के लिए निम्नलिखित चीजें उपयोग में लायी जाती है:
1. सागरीय लवणता-
- विद्वानों का मानना है कि जिस समय सागरों की उत्पत्ति हुई इस समय इसका जल खारा नहीं था।
- धरातल पर बहने वाली नदियों के द्वारा लाए गए अवसाद सागरों में मिलने से सगरों का जल खारा होता गया।
- सागरों के जल में हर साल लवणता में वृद्धि की दर माप कर पृथ्वी की आयु का अनुमान लगाया जा सकता है।
- प्रसिद्ध विद्वान जॉली ने लवणता की गणना के आधार सागरों का निर्माण आज से लगभग 8 करोड़ वर्ष पूर्व बताया, पृथ्वी का निर्माण इससे भी पूर्व में हुआ था।
- इसके आधार पर पृथ्वी की आयु का अनुमान लगभग 12 करोड़ वर्ष लगाया है।
- यह गणना काफी दोष पूर्ण है।
- क्योंकि सागरों में मौजूद कुल खारेपन अर्थात् लवणता तथा प्रतिवर्ष खारेपन में वृद्धि की गणना करना बहुत कठिन काम है।
- नदियों द्वारा जो लवणता सागरों में लाई जाती है उसकी मात्रा व दर दोनो अलग होता है।
- शुरुआत से सागरों को लवण रहित कहना भी उचित नहीं है क्योंकि सागरों को लवणता संवाहनिक तरंगों से भी प्राप्त होता है।
- इस प्रकार सागरीय लवणता के आधार पर पृथ्वी की उत्पत्ति का समय ज्ञात करना सर्वमान्य नही है।
2. तलछट का जमाव-
- पृथ्वी की उत्पत्ति के साथ ही आग्नेय चट्टानों का निर्माण हुआ।
- ये चट्टानें आज अपक्षय, अनाच्छादन के कारण अवसादी चट्टानों में बदल चुका है।
- पृथ्वी पर ऐसे अवसादी शैलों का जमाव हमेशा होते रहता है।
- यानी यह क्रिया सदैव चलते रहता है।
- अवसादी चट्टानों को गहराई एवं चट्टानों के जमाव की प्रतिवर्ष दर के आधार पर पृथ्वी की आयु का अनुमान लगाया जा सकता है।
- होम्स के अनुसार,
- पृथ्वी पर अवसादों की अधिकतम मोटाई 112 किलो मीटर तथा आयु 120 करोड़ वर्ष है।
- इसके आधार पर पृथ्वी की आयु लगभग 250 करोड़ वर्ष आंकी गई है।
- इस पर आधारित गणना का प्रमुख दोष अपरदन के विभिन्न कारकों के द्वारा अवसादों के निक्षेपण की दर में असमानता है।
3. रेडियो एक्टिव तत्वों का साक्ष्य-
- पृथ्वी का आयु की गणना में रेडियो एक्टिव पदार्थों के साक्ष्य अधिक विश्वसनीय मानना गया है।
- इन पदार्थों के विघटन से हमेशा ऊष्मा निकलती है।
- यूरेनियम एवं थोरियम प्रत्येक शैल में किसी न किसी रूप या मात्रा में पाया जाता है।
- रेडियो एक्टिव पदार्थों से पृथ्वी की आयु जानने की विधियों में कार्बन डेटिंग, यूरेनियम डेटिंग, पोटेशियम एवं रूबेनियम डेटिंग सबसे प्रसिद्ध है।
- इसके आधार पृथ्वी की आयु 2 अरब से 3 अरब के बीच आंकी गई है।
4. जीवाश्म के साक्ष्य-
- पृथ्वी की उत्पत्ति के संबंध में जीवाश्म एक महत्वपूर्ण साक्ष्य है, जो पृथ्वी के निर्माण को संदर्भित करता है।
- जीवाश्म भूमि पर मौजूद अवशेष होते हैं जो जीवों के शरीर से शोषित वस्तुओं का अवशेष होता है। ये अवशेष धीरे-धीरे भूमि के ऊपर जमा होते हैं और बनते जाते हैं, जिससे नई पृथ्वी का निर्माण होता है।
- वैज्ञानिक इस बात से सहमत हैं कि जीवाश्म और अन्य अवशेषों का जमा होना पृथ्वी के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जीवाश्मों से भरी पृथ्वी का निर्माण समझ में आता है कि इसका निर्माण काफी लंबे समय में हुआ होगा और यह सतह पर अपने आकार और स्थिति को प्राप्त करने में काफी समय लगाएगी।
- जीवाश्म के साक्ष्य के आधार पर पृथ्वी की आयु 2 अरब वर्ष मानी गई है।
पृथ्वी का भू-वैज्ञानिक इतिहास:
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पृथ्वी का भू-वैज्ञानिक इतिहास का कालक्रम |
1. प्रोटेरोजोइक महाकल्प-
- यह दो महाकल्पों में से एक है, जिसे आद्य महाकल्प भी कहते है।
- इस महाकल्प को आयु आज से लगभग 60 करोड़ वर्ष पर मानी जाती है।
- इसकी शुरुआत लगभग 460 करोड़ वर्ष मानी जाती है।
- इस महाकल्प में बहुत बड़े रूप में जैव दशाओं के विकास के लिए अनुकूल परिवेश नहीं मिला।
- यह कालखंड जीव एवं वनस्पति के अभाव का काल रहा।
- इस काल में पृथ्वी का अधिकांश भाग में गैस, द्रव एवं अत्यधिक तप्त अवस्था में था।
- इसी महाकल्प के अंतिम भाग में ज्वालामुखी और पर्वत निर्माण वाली घटना हुई।
- इस महाकल्प की अवधि सबसे लंबी है।
- धरातल की विभिन्न चट्टानें इसी काल में बनी जिसमे ग्रेनाइट, नीस प्रमुख है।
- अमेरिका की मेनिटोबा
- भारत की बंगाल, बुंदेलखंड, धारवाड़, कड़प्पा एवं विंध्य चट्टानें इसी महाकल्प की है।
- इस महाकल्प के अंत में भू संचलन के कारण पेंजिया महाद्वीप- लोरेंशिया, बाल्टिक, अंगारालैण्ड एवं गोण्डवानालैण्ड नाम के भूखंड में विभक्त हुआ।
2. फेनेरोजोइक महाकल्प-
- इस महाकल्प में जीवों एवं वनस्पतियों का विकास हुआ।
- इस पुराजीव महाकल्प भी कहते है।
- फेनेरोजोइक महाकल्प की शुरुआत आज से लगभग 60 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ था।
- इस महाकल्प के आरंभिक समय में महाद्वीपों पर महासागरों का अतिक्रमण जैसी घटनाएं हुई।
- अपृष्ठवंशीय जीव (invertebrates) एवं घास जैसी वनस्पति पहली बार प्रकट हुई।
- महाकल्प के अंत में आवृत्तबीज पादप उत्पन्न हुए।
- चट्टानों में प्रमुख रूप से लाइम स्टोन, सैंड स्टोन तथा स्लेट निर्मित हुई।
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अपृष्ठवंशीय जीव (invertebrates) |
फेनेरोजोइक महाकल्प को तीन कल्पों में बांटा गया है-
1. पैलिओजोइक या पुराजीव कल्प-
- इस कल्प की अवधि 60 करोड़ वर्ष पूर्व से लेकर 22.5 करोड़ वर्ष पूर्व तक मानी जाती है।
इस कल्प को छः योगों में बांटा गया है-
1. कैंब्रियन युग-
- यह पुराजीव कल्प का आरंभिक काल है।
- इसकी अवधि 10 करोड़ वर्ष मानी जाती है।
- इस काल में भू-वैज्ञानिक इतिहास में पहली बार स्थल भागों पर समुद्रों का अतिक्रमण हुआ।
- इसके फलस्वरूप अवसादी चट्टानों का निर्माण हुआ जैसे सैंड स्टोन, लाइम स्टोन आदि।
2. आर्डोविसियन युग-
- आर्डोविसियन युग की अवधि लगभग 6.5 करोड़ वर्ष है।
- इस समय पृथ्वी के समुद्री भाग स्थल भाग पर विस्तार करते रहे।
- ज्यादातर महाद्वीप जलमग्न हो गए।
- इसी काल में अनेक ज्वालामुखी विस्फोट हुए।
- इस युग में जीवों एवं समुद्री वनस्पति का विकास हुआ।
- इसी समय उत्तर-पश्चिम यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका में सीमित पर्वत रचनाएं हुई।
- अप्लेशियन पर्वतमाला उनमें से एक है।
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अप्लेशियन पर्वतमाला |
3. सिल्यूरियन युग-
- इस युग की अवधि 4 करोड़ वर्ष है।
- इस युग में रीढ़ की हड्डी वाले जीवों का उदय हुआ।
- इस कारण से इस काल को "रीढ़ की हड्डी" वाला युग भी कहा जाता है।
- समुद्र में मछलियां और स्थल भाग पर बिना पत्तियों वाली वनस्पति उत्पन्न हुई।
- समुद्रों में प्रवालों का विस्तार हुआ।
4. डेवोनियन युग-
- इस युग की अवधि लगभग 5 करोड़ वर्ष है।
- इस युग में बड़ी संख्या में समुद्रों में मछलियां उत्पन्न हुई, इसके कारण इस युग को "मत्स्य युग" भी कहा जाता है।
- कैलिडोनियन संचलन के कारण पर्वतों की ऊंचाई बढ़ने लगी।
- डेवोनियन युग में महाद्वीपीय भागों का अवतलन भी हुआ।
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समुद्री मछलियां |
5. कार्बोनिफेरस युग-
- कार्बोनिफेरस युग युग की अवधि 6.5 करोड़ वर्ष है।
- इस युग में पृथ्वी की जलवायु काफी उष्ण एवं आर्द्र हो गई थी।
- इस कारण अत्यंत सघन वनों की उत्पत्ति हुई।
- लेकिन धरातल में काफी उथल-पुथल के कारण ये वन जलमग्न हो गए।
- इन पर अवसादों के जमाव, ऊपरी दबाव, पृथ्वी की भीतरी गर्मी एवं रासायनिक क्रिया के कारण कालांतर में ये वन कोयले में बदल गए।
- वृहद रूप में कोयले के विस्तार के कारण इस "कोयले का युग" भी कहा गया।
- इसी काल में जल एवं स्थलचरी जीवों का विकास हुआ।
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वनों का कोयले में परिवर्तन |
6. पर्मियन युग-
- पुराजीव कल्प का यह अंतिम युग है जिसकी अवधि 5.5 करोड़ वर्ष है।
- इस युग में जल एवं स्थलचरी जीव का काफी विकास हुआ।
- रेंगने वाले जीवों की भी उत्पत्ति हुई।
- पर्मियन युग में हरसीयन भूसंचलन के कारण मोड़दार पर्वतों का निर्माण हुआ।
- इस युग के अंत में पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हुई जिसके कारण जलवायु शुष्क रहा।
2. मोसोजोइक या मध्य जीवी कल्प-
- मध्य जीवी कल्प की अवधि 225 करोड़ वर्ष पूर्व से लेकर लगभग 65 करोड़ वर्ष पूर्व तक मानी गई है।
- यह कल्प पृथ्वी पर प्राचीन एवं नवीन जीवों को जोड़ने वाली कड़ी के रूप में है।
- पुराजीव कल्प में रेंगने वाले जीव बच गए थे, जो इस कल्प में जल एवं स्थल भाग में फेल गए।
- इस काल में विशालकाय जीवों का उद्भव हुआ।
इस कल्प को तीन युगों में बांटा गया है-
1. ट्रियासिक युग-
- इस युग की अवधि 2 करोड़ वर्ष मानी जाती है।
- पृथ्वी का जलवायु शुष्क हो जाने के कारण इस युग में ज्यादातर जीवों का विनाश हो गया।
- इस युग में छोटे स्तनपोषी जीव का विकास हुआ।
- गोंडवाना जो अब तक संयुक्त रूप से स्थल भाग के रूप में था, ये इस युग में खंडित होकर ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण भारत, अफ्रीका एवं दक्षिणी अमेरिका के भूखंडों में बंट गया।
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ट्रियासिक युग |
2. जुरासिक युग-
- ट्रियासिक युग के बाद जुरासिक युग का आरंभ होता है, इसकी अवधि लगभग 6 करोड़ वर्ष मानी जाती है।
- अधिकांश भागों में अब तक उष्ण एवं शुष्क जलवायु थी।
- स्तनपोषी जीवों का विस्तार जल, स्थल एवं नभ तक हो गया।
- इनमे कुछ प्राणी हाथी एवं गेंडे के जैसे विशालकाय थे।
- जुरेसिक युग के जलीय जीव में प्लीओसोरस, स्थलीय जीव में डायनासोरस तथा पक्षियों में रोडेक्टाल प्रमुख है।
- इसी काल में निवादा एवं लारेमाइल भूसंचलन हुआ।
- भारत में राजमहल एवं सिलहट की पहाड़ियों का निर्माण हुआ।
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जुरेसिक युग |
3. क्रीटेशस युग-
- क्रीटेशस युग की अवधि लगभग 7 करोड़ वर्ष है।
- इस युग में खड़िया की परतों का विशाल जमाव हुआ।
- जिसके कारण इसे "खड़िया युग" या Chalk Period भी कहते है।
- कनाडा, अलास्का, यूरोप, मैक्सिको में इसका जमाव बड़े पैमाने पर हुआ।
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खड़िया (Chalk) |
- इस युग में ज्वालामुखी भी सक्रिय रहे।
- दक्कन के पठार में लावा का जमाव इसी युग में हुआ।
- वनस्पति की दृष्टि से ओक, वलनट तथा नारियल आदि वृक्षों का जन्म हुआ।
- नदियों का प्रवाह धीमा होने के कारण बड़े आकार के डेल्टा का निर्माण हुआ।
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ओक एवं नारियल वृक्ष |
3. कैनोजोइक या नवजीवी कल्प-
- पृथ्वी के इतिहास का यह अंतिम कल्प है। इसका प्रारंभ आज से लगभग 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ था।
- इस कल्प में पृथ्वी का तापमान घाट जाने से अनेक भाग हिम से ढंक गया।
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हिम से ढंका |
- कई रेंगने वाले जीव नष्ट हो गए, नए स्तनपोषी जीवों का जन्म हुआ।
- भूसंचलन के कारण कई मोड़दार पर्वतों का निर्माण हुआ।
इस कल्प को दो युगों में बांटते है-
1. टर्शयरी युग-
- टर्शयरी युग की अवधि लगभग 6.3 करोड़ वर्ष मानी गई है।
टर्शयरी युग को पुनः 4 युगांतर में बांटा गया है-
A. इओसीन-
- इओसीन युगांतर आज से लगभग 3.8 करोड़ वर्ष पूर्व तक रहा।
- इस काल में यूरोप महाद्वीप का अवतलन होने से समुद्री भागों का विस्तार हुआ।
- हिंद महासागर एवं अटलांटिक महासागर का विकास भी इसी का काल में हुआ।
- विशालकाय रेंगने वाले जीव लुप्त हो गए।
- स्थल पर हाथी, घोड़े, गैंडे आदि स्तनपोषी जीव विकसित हुए।
- उत्तरी गोलार्ध में उष्ण कटिबन्धीय जलवायु के कारण ताड़ वनों का विस्तार हुआ।
B. ओलिगोसीन-
- इसकी अवधि 7 करोड़ वर्ष थी।
- इस युगांतर में सागरीय जल के पीछे हटने से स्थल भाग का विस्तार हुआ।
- टेथिस सागर से यूरोप में अल्पास पर्वत की रचना हुई।
- घास के मैदान के विस्तार से शाकाहारी जीवों का विकास हुआ।
- मनुष्य के पूर्वज के रूप में वानरों का विकास इसी युगांतर में हुआ।
C. मायोसीन-
- मायोसीन युगांतर आज से लगभग 2.5 करोड़ वर्ष पूर्व प्रारंभ होकर 1.8 करोड़ वर्ष पूर्व की अवधि तक रहा।
- इस युगांतर में नवीन मोड़दार पर्वतों का निर्माण हुआ जिसमे से हिमालय एक है।
- भूमध्य सागर ने वर्तमान स्वरूप इसी युगांतर में प्राप्त किया।
- जलवायु दशाओं में भिन्नता के कारण विभिन्न प्रकार के वनस्पतियों का विकास हुआ।
D. प्लिओसीन-
- यह युगांतर लगभग 70 लाख वर्ष पूर्व प्रारंभ होकर, 50 लाख वर्ष तक चला।
- इस काल में सागरों, महासागरों, महाद्वीपों का वर्तमान स्वरूप विकसित हुआ।
- समुद्री वनस्पति एवं जीवों का वर्तमान स्वरूप विकसित हुआ।
- हिमालय के अंतिम उत्थान के रूप में शिवालिक श्रेणी का निर्माण हुआ।
- जलवायु की दशा लगभग आज के समान ही रहा।
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शिवालिक श्रेणी, इमेज स्त्रोत: विकिपीडिया |
2. क्वार्टनरी युग-
- यह पृथ्वी का नवीनतम युग इसकी शुरुआत लगभग 20 लाख वर्ष मानी जाती है।
- इस युग में अधिकांश भाग हिमाच्छादित रहे।
- मनुष्य, वनस्पति एवं पशु-पक्षियों का पूर्ण विकास हुआ।
इस युग को पुनः दो युगांतरों में बांटा गया है-
A. प्लिस्टोसीन-
- आज से लगभग 10 लाख वर्ष पूर्व प्लिस्टोसीन युगांतर का आरंभ अपने हिमावरण के लिए प्रसिद्ध है।
- धरातल पर विशाल रूप में हिमावरण के कारण इस हिमकाल भी कहते है।
- इसी युगांतर में धरातल पर अनेक हिमानिकृत स्थलाकृति रचनाएं हुई।
- इनमे उत्तरी अमेरिका की महान झीलें, नॉर्वे का फियोर्ड तट, साइबेरिया के दलदल आदि प्रमुख है।
- जलवायु परिवर्तन से जीव-जंतुओं का स्थानांतरण हुआ।
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हिमावरण |
B. होलोसीन-
- आज से लगभग 10 हजार वर्ष पूर्व इसका प्रारंभ हुआ।
- यह युगांतर वर्तमान तक चल रहा है।
- इस काल में हिमावरण पिघलने लगा।
- इसके फलस्वरूप समुद्र का जल लगभग 100 मीटर ऊपर उठ गया।
- इस काल में ही एशिया और अफ्रीका में विशाल मरुस्थल की उत्पत्ति हुई।
- पृथ्वी का तापमान बढ़ना, हिमानियो का पिघलना, जलवायु में परिवर्तन अब भी जारी है।