प्रवाल का अर्थ:
- प्रवाल भित्तियाँ समुद्र के भीतर स्थित चट्टान हैं जो प्रवालों द्वारा छोड़े गए कैल्सियम कार्बोनेट से निर्मित होती हैं।
- वस्तुतः ये इन छोटे जीवों की बस्तियाँ होती हैं।
- साधारणत: भित्तियाँ, उष्ण एवं उथले जलवो सागरों, विशेषकर प्रशांत महासागर में स्थित, अनेक उष्ण अथवा उपोष्णदेशीय द्वीपों के सामीप्य में बहुतायत से पाई जाती है।
- प्रवाल जीवों के साथ शैवाल, घोंघें, फोरामिनीफेरा, हाइड्रोज़ोआ तथा बायोजोआ आदि जीव मिलते है।
- इन जीवों के अवशेषों द्वारा प्रवालों के ढांचों को जोड़ने की प्रक्रिया होती है।
- प्रवाल को मूंगा भी कहते है।
- इनका शरीर चूना तथा डोलोमाइट से युक्त अत्यंत कोमल और स्पंज के सामान होती है।
प्रवालों के विकास की आदर्श दशाएं:
1. सागरीय जल का तापमान-
- प्रवाल समुद्रों मे वहाँ पाये जाते है जहाँ जल का तापमान 21° से.ग्रे. होता है।
- इससे कम तापमान मे प्रवाल नहीं रह सकते है।
- यह समुद्र के ऊपरी भाग पर ज्यादा पाये जाते है क्योंकि ज्यादा गहराई पर तापमान कम और कैल्शियम भी कम होता है।
- प्रवालों का ठीक तरह से विकास 30° उत्तर से 30° दक्षिण मे होता है।
2. सागरों की गहराई-
- प्रवाल क विकस ज्यादा गहराई पर नहीं होता है।
- इनका विकास 60 से 100 मीटर की गहराई पर होता है।
- अधिक गहराई पर सूर्य की किरण नहीं पहुँच पाती है।
- ज्यादा गहराई पर ऑक्सीजन और कैल्शियम की भी कमी होती है।
- हाफमीस्टर के अनुसार 300 फीट से अधिक गहराई पर प्रवाल नहीं मिलते है।
- गुइचलर के अनुसार 60 मीटर तक की गहराई तक ही विकसित होते है।
3. सागरीय जल की लवणता-
- प्रवाल जीव अधिक लवणता (खारेपन) मे जीवित नहीं रह सकते है।
- जिन महासागरों मे अधिक खारापन होता है, वहाँ चूने की मात्रा भी कम रहती है जो कि प्रवाल जीवों का भोजन है।
- अधिक वर्षा वाले भागों मे भी प्रवाल विकसित नहीं हो पाते है।
4. तलछट का जमाव-
- प्रवाल की उत्पत्ति के लिए तलछट रहित स्वच्छ जल की आवश्यकता होती है।
- गंदा जल प्रवाल के विकास मे बाधा बनता है।
- नदियों द्वारा लाए गए तलछट प्रवाल जीवों के खोलो मे जम जाते है जिससे प्रवाल मर जाते है।
5. शांत जल-
- प्रवाल की उत्पत्ति के लिए समुद्र का शांत होना जरुरी है। तीव्र हवाओं के क्षेत्र एवं तीव्र लहरों व तरंगों वाले क्षेत्रों मे प्रवाल जन्म नहीं लेते है।
- गर्म धाराएं महाद्वीपों के पूर्वी तटीय भागों मे मिलते है।
- वे प्रवालों के विकास मे सहायक है।
- चुंकि महाद्वीपों के पश्चिमी भाग मे ठंडी धाराएं चलती है जो प्रवालों के विकास मे बाधक होती है।
6. प्रचलित पवन-
- प्रवाल जीवों पर हवा की बहती हुई प्रकृति का भी प्रभाव पड़ता है।
- प्रत्येक महाद्वीपों के पश्चिमी तट पर व्यापारिक पवने तट से काफी अंतर पर सागरों की ओर बहती रहती है।
प्रवाल भित्ति के प्रकार एवं वितरण:
(अ) उत्पत्ति और प्रकृति के आधार पर प्रवालों के प्रकार-
1. तटीय प्रवाल भित्ति-
- यह प्रवाल महाद्वीपों और द्वीपों के किनारे या तटीय भाग मे देखने को मिलते है।
- इनकी रचना महासागरों के नीचे सदैव डूबी हुई रहती है।
- इनके ऊपरी भाग की रचना उबड़-खाबड़ होती है।
- तटों के किनारे लहरें प्रवाल के लिए भोजन बहाकर लाती है।
- इसके कारण प्रवाल का विकास तेरी से होता है।
- भारत के अंडमान निकोबार तथा अमेरिका के फ्लोरिडा अन्तरीप मे तटीय प्रवाल भित्ति बहुतायत पायी जाती है।
तटीय प्रवाल भित्ति |
2. अवरोधक प्रवाल भित्ति-
- ये प्रवाल सबसे अधिक विस्तृत होते है।
- महाद्वीपों के निकट स्थित बड़े निमग्न स्थलों तथा समुद्री चबूतरों (Platforms) मे इनका आधार पाया जाता है।
- इनका ढाल बाहर सागर की ओर तीव्र होता है।
- अवरोधक प्रवाल भित्ति तथा तट के बीच 300 मीटर की से लेकर 6 कि.मी. तक के लैगून पाये जाते है।
- विश्व मे सबसे विशाल अवरोधक प्रवाल भित्ति ऑस्ट्रेलिया पूर्वी तट पर 9° दक्षिणी 22° दक्षिणी के बीच 1920 कि.मी. की लम्बाई तथा तट से तट तक 32 कि.मी. से 240 कि.मी. दूर स्थित है।
- इसकी चौड़ाई 16 कि.मी. से लेकर कहीं-कहीं 144 कि.मी. तक है।
अवरोधक प्रवाल भित्ति |
3. वलयाकार प्रवाल या एटॉल-
- इस प्रकार के प्रवाल का आकर घोड़े की नाल या अंगूठी के समान वलयाकार होती है।
- इस भित्ति के मध्य मे छिछली झील पायी जाती है।
- इस झील की गहराई 80 मीटर से 140 मीटर तक होती है।
- एटॉल की ज्यादा संख्या दक्षिणी प्रशांत महासागर मे अधिक है।
- फिजी, ट्रक, फुनाफूटी तथा बिकनी विश्व प्रसिद्ध प्रवाल वलय है।
वलयाकार प्रवाल या एटॉल |
एटॉल का विकास |
4. फैरोस एवं पिनैकल भित्ति-
- छोटे आकर के वृताकार भित्ति को फैरोस कहते है।
- ये प्रवाल वलय की दिवार (Rim) का निर्माण करते है।
- प्रवाल रोधिका के पीछे या लैगून मे प्रवाल के जो ढेर बन जाते है उन्हें 'Pinacle reef' कहा जाता है।
- इसकी ऊपरी सतह चौरस होती है।
5. प्रवाल द्वीप-
- प्रवाल द्वीपों का निर्माण महासागरों मे किसी ज्वालामुखी के शिखर या दूसरे किसी उभरे भाग होता है।
- द्वीपों की रचना मे प्रवाल, गोलाश्म व अन्य कैल्शिमी जीवों के निक्षेप का भी सहयोग होता है।
- ये सभी पदार्थ लहरों द्वारा भित्ति के निकट या ऊपर एकत्रित हो जाते है।
(ब) प्रवालों की स्थिति के आधार पर प्रवाल भित्ति के प्रकार-
1. उष्ण कटिबन्धीय प्रवाल भित्ति-
- प्रवाल भित्तियों के विकास के लिए 25° उ. और द. की स्थिति अनुकूल मानी जाती है।
- इसलिए प्रशांत, हिंद व अटलांटिक महासागर मे द्वीपों के निकट इन भागों मे असंख्य द्वीपों के सहारे प्रवाल भित्ति अधिक रूप मे पायी जाती है।
- उष्ण कटिबन्धीय प्रवाल भित्ति विभिन्न परिस्थितियों मे विभिन्न आकर की बनती है।
प्रवाल भित्ति के प्रकार |
2. सीमान्त प्रदेशीय प्रवाल भित्ति-
- 25° से 30° उत्तर और मध्य भाग मे सीमान्त प्रदेशीय प्रवाल भित्तियां पायी जाती है।
- हवाई द्वीप, बारमूडा आदि के चबूतरे इसके उदाहरण है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न,
प्रवालों के विकास के लिए समुद्र जल का तापमान कितना होना चाहिए?
प्रवलों के सही विकास के लिए कम से कम 21°C तापमान होना आवश्यक है। यहीं कारण है कि प्रवाल उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में अधिक पाए जाते है।
प्रवाल कितनी गहराई में विकसित होता है?
प्रवाल सामान्यतः 50 से 60 मीटर तक की गहराई में ही पाए जाते है, क्योंकि इससे अधिक गहराई पर धूप (सूर्य प्रकाश) और ऑक्सीजन नही पहुंच पाता है। इसलिए प्रवाल अधिकांशतः समुद्र के निमग्न तट ( पर अधिक पाए जाते है।
किस प्रवाल भित्ति के मध्य(केंद्र) में लैगून होता है?
एटाॅल प्रवाल भित्ति के केंद्र में लैगून होता है। क्योंकि इसका निर्माण समुद्र में डूबे हुए द्वीप के से होता है जिसमे मध्य में लैगून और उसके चारों ओर प्रवाह का विकास हो जाता है।
प्रवाल की उत्पत्ति का अवतलन सिद्धांत किसने दिया है?
प्रवाल की उत्पत्ति का अवतलन सिद्धांत डार्विन का है।
विश्व का सबसे बड़ा प्रवाल भित्ति कौन सा है?
विश्व का सबसे बड़ा प्रवाल भित्ति ऑस्ट्रेलिया का ग्रेट बैरियर रीफ है। जो उत्तरी-पूर्वी तट के समांतर लगभग 1931.213 किलोमटर की लंबाई और चौड़ाई 16 किलोमीटर से 145 किलोमीटर तक है।
ग्रेट बैरियर रीफ को और किस नाम से जाना जाता है?
ग्रेट बैरियर रीफ को पानी का बगीचा भी कहते हैं।
भारत में प्रवाल भित्तियां कहां पाए जाती है?
भारत प्रवाल भित्ति मन्नार की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप द्वीप समूह में पाए जाते है।