प्रादेशिक नियोजन की आवश्यकता, महत्व | Need and importance of Regional Planning
प्रादेशिक नियोजन क्या है? इसका महत्व, वर्तमान में इसकी आवश्यकता।
भूमिका:
- तेज गति से विकास करने के नाम पर मानव ने अपने स्थानीय, क्षेत्रीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तरों पर इस तरह का बदलाव किया कि वातावरण मे तथा हमारे पारिस्थितिकी मे सन्तुलन बिगड़ गया।
- सामाजिक, आर्थिक असमानता को कम करने के लिए तथा पारिस्थितिकी असन्तुलन को रोकने के लिए प्रभावी प्रादेशिक नियोजन बनाने की दिशा में व्यापक स्तर पर कार्य करना ही प्रादेशिक नियोजन कहा जाता है।
- अलग-अलग देशों की विकास की रफ्तार अलग-अलग है।
- जो देश अभी पिछड़े है वे लगातार प्रयत्नशील है कि सही तरह से नियोजन कर विकास की रफ्तार को बढ़ाया जा सके।
- प्रादेशिक नियोजन इसलिए आवश्यक है क्योंकि इसमें उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग उचित ढंग से किया जाता है।
- प्रादेशिक नियोजन मे इस तरह से नीतियों को बनाया जाता है कि किसी भी संसाधन का दुरूपयोग न हो सके।
प्रादेशिक नियोजन की आवश्यकता निम्न प्रकार से है:
1. स्थानीय संसाधनों के सदुपयोग के लिये-
- प्रादेशिक नियोजन स्थानीय संसाधनों के समान रूप से उपयोग पर बल देता है।
- इससे स्थानीय स्तर पर समाज के आर्थिक विकास को बढ़ाया जा सकता है।
- प्रादेशिक नियोजन क्षेत्रीय असंतुलन को समाप्त कर उचित और चौमुखी विकास पर ध्यान केंद्रित करता है।
- इसलिए प्रादेशिक नियोजन की सभी देशों को जरुरत है।
- प्रादेशिक नियोजन काम्प्लेक्स से संसाधन का समज के सभी वर्गों मे सामान रूप से वितरण व उपयोग किया जा सकता है।
- पूर्व सोवियत संघ के प्रादेशिक नियोजन मे प्रादेशिक नियोजन काम्प्लेक्स पर अधिक बल दिया है।
2. बढ़ती जनसंख्या व पर्यावरण समस्याओं के उपाय के लिये-
- विश्व मे आज बढ़ती जनसंख्या के कारण कई समस्याएं सामने देखने को मिल रही है जिनमें गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, अच्छे निवास स्थान की समस्या, अशिक्षा, प्रदुषण की समस्या आदि है।
- इन सभी समस्याओं के लिए आज हर देश काफी चिन्तित है।
- इन सभी समस्याओं का समाधान प्रादेशिक नियोजन से संभव है।
- किसी भी देश मे संसाधनों का उपयोग उचित या संतुलित ढंग से यदि किया जाए तो वहाँ सभी ओर संतुलन बना रहता है।
- इस संतुलन को बनाए रखने के लिए प्रादेशिक नियोजन आवश्यक है।
3. भू-वैन्यसिक संगठन की मजबूती के लिये-
- लंबे समय तक उपनिवेश रहने से स्वतंत्रा प्राप्ति के बाद वहां के आर्थिक विकास के लिए बनाए गए संगठन कमज़ोर हो गए।
- इस तरह के देशों के संसाधन को विदेशी शासकों द्वारा केवल अपने देश के विकास के लिए बहुत अधिक मात्रा मे दोहन किया गया।
- इस कारण उपनिवेश वाले देशों बहुत तेज़ गति से संसाधन की मात्रा मे कमी होती गई और इसके साथ ही अर्थव्यवस्था मे भी असंतुलन होता गया।
- इस असंतुलन से बचाव के लिए कृषि, उद्योग, परिवहन, व्यापार आदि के लिए नियोजित ढंग से योजनाएं बनायीं गई।
- अतः यहाँ के लिए प्रादेशिक नियोजन अति आवश्यक और महत्वपूर्ण है।
4. विकसित क्रोड व अविकसित उपान्त मे संतुलन-
- प्रादेशिक नियोजन उन देशों मे भी आवश्यक है जहाँ क्रोड उपान्त की समस्या है।
- क्रोड मे अत्याधुनिक अर्थव्यवस्था तथा उपान्त मे बहुत पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था होती है।
- विश्व स्तर पर सबसे पहले ग्रेट ब्रिटेन क्रोड के रूप मे उभर कर सामने आया।
- ग्रेट ब्रिटेन की तुलना मे अन्य उसके उपनिवेश पिछड़ गए जिसे उपान्त कहा जाता है।
- फ्रींडमैन ने ब्रिटेन-भारत को क्रोड और उपान्त के रूप मे देखा।
- क्रोड-उपान्त के कारण विश्व मे प्रादेशिक असंतुलन की समस्या उत्पन्न हुई जिसे दूर करने के लिए प्रादेशिक नियोजन की आवश्यकता है।
- क्रोड-उपान्त की समस्या केवल वैश्विक नहीं है यह समस्या किसी भी देश के अंदर विभिन्न राज्यों के बीच भी देखा जा सकता है। यहाँ तक की यह समस्या स्थानीय स्तर पर भी है।
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फ्रीडमैन का विकास मॉडल |
5. जीवन गुणवत्ता मे सुधार व वृद्धि के लिये-
- सभी क्षेत्रों मे मानव जीवन गुणवत्ता एक समान नहीं है।
- कई जगहों पर आज भी सैंकडों सालों से अत्यंत पिछड़े है।
- इसके विपरीत कई ऐसे स्थान या क्षेत्र है जहाँ मानव जीवन की गुणवत्ता अत्यंत उत्तम है।
- मानव किसी भी देश मे हो वह हमेशा अपना जीवन स्तर ऊँचा रखना चाहता है और इसके लिए वह सदैव प्रयत्नशील है।
- वह अपने शारीरिक व मानसिक क्षमताओं का विकास, भोजन, वस्त्र, शिक्षा तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ प्रदुषण रहित वातावरण भी चाहता है।
- इसके लिए प्रादेशिक नियोजन अति आवश्यक है।
6. विभिन्न आर्थिक क्रियाओं मे समाकलन हेतु-
- किसी भी देश के आर्थिक विकास मे विभिन्न क्षेत्रकों का योगदान होता है जैसे- कृषि, व्यापर, वाणिज्य आदि।
- यदि इन क्षेत्रकों में से किसी भी एक क्षेत्रक पर बुरा प्रभाव होता है तो पूरे अर्थव्यवस्था पर इसका असर दिखाई देता है।
- अतः आर्थिक विकास के लिए इन क्षेत्रकों का समाकलन आवश्यक है जिसके लिए प्रादेशिक नियोजन आवश्यक है।
7. संसाधनों एवं पारिस्थितिकी मे सन्तुलन के लिये-
- प्रादेशिक नियोजन अति आवश्यक इसलिये भी है क्योंकि संसाधनों के अंधाधुन उपयोग से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ गया है।
- तीव्र विकास कि होड़ मे प्राकृतिक संसाधनों को लगातार नष्ट किया जा रहा है।
- पर्यावरण मे भी प्रदुषण लगातार बढ़ रहा है।
- अतः प्राकृतिक संसाधनों व पारिस्थितिकी सन्तुलन बनाए रखने के लिए तथा समान विकास के लिए आवश्यक है।
8. राजनितिक स्थायित्व के लिये-
- प्रादेशिक नियोजन का योगदान राज्य के प्रशासन तन्त्र को स्थायित्व प्रदान करने में भी होता है।
- देश की एकता एवं अखण्डता (Unity Integrity) को बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि राज्य (राष्ट्र) के सभी क्षेत्र विकसित हों और राज्य के किसी भी कोने में विद्रोह व आक्रोश की भावना न पनपने पाये ।
- धार्मिक व साम्प्रदायिक सौहार्द्र बनाये रखने व सरकार की नीतियों को जन साधारण तक पहुँचाने में प्रादेशिक नियोजन का महत्वपूर्ण योगदान रहता है।
- अस्थिर राजनीतिक परिस्थितियों में विकास की कल्पना नहीं की जा सकती।
- इसलिये अविकसित भू-भागों के राजनीतिक स्थायित्व के लिये प्रादेशिक नियोजन बहुत आवश्यक है।
9. राज्य को सदृढ आर्थिक आधार देने व देश की रक्षा हेतु-
- प्रादेशिक नियोजन राज्य को सुदृढ़ आर्थिक आधार देता है।
- इसके माध्यम से उपयुक्त व कुशल अवस्थापनाओं के लिये जो योजनायें बनाई जाती हैं, उनके पूरे हो जाने पर आर्थिक विकास तेजी से घटित होता है।
- प्रादेशिक नियोजन उपयुक्त स्थानों पर ही औद्योगिक क्रियाओं की स्थापना का सुझाव देता है।
- इससे युद्धकाल के समय उद्योगों की रक्षा होती है।
- यदि सभी औद्योगिक इकाइयाँ एक स्थान पर ही केन्द्रित हों तो उन्हें दुश्मन हवाई निशाना बनाकर नष्ट कर सकता है।
- अतः विस्तृत क्षेत्र में फैले राष्ट्रों-भारत, चीन, रूस, कनाडा, ब्राजील, आस्ट्रेलिया, संयुक्त राज्य अमेरिका आदि में प्रादेशिक नियोजन को आवश्यक रूप से विकसित किया जाना चाहिये।
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