तारा क्या होता है?
- तारा उस आकाशीय पिंड को कहा जाता है जिसके पास अपनी खुद की ऊष्मा और खुद का प्रकाश होता है।
- तारा बनने से पहले वह विरल गैस का समूह होता है, बाद में यही मिलकर निहारिका(Nebula) बन जाता है।
- इसके बाद इसमें संलयन की प्रक्रिया शुरू हो जाता है और वह तारे का रूप ले लेता है।
- इसके बाद तारे में हाइड्रोजन का हीलियम में संलयन कि प्रक्रिया शुरू होती है और और यह प्रक्रिया निरंतर चलते रहती है।
- तारे में ईंधन प्लाज्मा अवस्था में होता है प्लाज्मा ठोस और द्रव के बीच की अवस्था होती है।
- जब तारे में ईंधन खत्म होने वाला होता है तब वह लाल दानव बनने लगता और इसका आकार भी बढ़ने लगता है।
ईंधन समाप्त होने के बाद तारे का दो कंडीशन होता है -
पहला स्थिति -
- यदि लाल दानव का आकार सूर्य से 1.44 गुना छोटा है।
- तो ऐसी स्थिति में उसमे थोड़ा बहुत ईंधन बांकी है तब वह श्वेत वामन बनेगा ।
- और यदि ईंधन पूरा समाप्त हो गया है तो वह काला वामन बनेगा।
दूसरी स्थिति -
- यदि लाल दानव का आकार सूर्य से 1.44 गुना बड़ा है तो वह निम्नलिखित बन सकता है-
अभिनव तारा -
- इसमें कार्बन जैसे हल्के पदार्थ लोहे के बदले लगता है जिससे यह विस्फोट कर लेता है।
न्यूट्रॉन तारा -
- यह तारा विस्फोट के बाद बनता है और इसका घनत्व अधिक होता है , आकर छोटा होता है।
Pusser -
- यह तारा चमकता है बुझता रहता है इससे बहुत अधिक संख्या में विद्यतचुम्बकीय तरंगे निकलती है।
- यह तेजी से घूमने वाला होता है।
क्वेसर -
- यह तारे की अंतिम अवस्था होती है इसमें विद्यतचुम्बकीय अति उच्च होती है।
तारा बनने की प्रक्रिया |
ब्लैकहोल -
- ब्लैकहोल का घनत्व अति उच्च होता है इतना अधिक घनत्व होने के कारण इससे प्रकाश भी नहीं गुजर पाती है।
- ब्लैकहोल की चुम्बकीय क्षमता अधिक होती है यह श्वेत वामन और काला वामन को भी अपनी ओर खींच लेती है।
- यदि यह किसी ग्रह से टकराता है तो उसे चिर के निकाल जाता है।
- पृथ्वी को इसी से खतरा है।