ग्रीन हाउस प्रभाव | Green House effect
Green House effect | ग्रीन हाउस प्रभाव।
परिचय:
- आज हम जानेंगे की ग्रीन हाउस क्या होता है और इससे पृथ्वी पर कैसे प्रभाव होता है, साथ ही यह भी जनेगे की पृथ्वी के किन भागो में ग्रीन हाउस बनने कि आवश्यकता पड़ती है और क्यों?
- पृथ्वी का वायुमंडल लगभग 6 किलो मीटर मोटा है और जिससे हम अलग अलग लेयर में बांट कर पढ़ते है।
- जब सूर्य कि किरणे यानी सूर्य कि लघु तरंगे पृथ्वी पर आती है तब वह वायुमंडल में नहीं रुक पाता और सीधे धरातल पर आता है।
- लेकिन जब धरातल से सूर्य की दीर्घ तरंगे वापस जाती है तो वह वायुमंडल में ही रुक जाता है और पृथ्वी का तापमान सम बनाए रखने में मदद करता है यदि उन तरंगों को को वायुमंडल रोकना बंद कर से तो तापमान में भरी परिवर्तन देखने को मिलेगा।
- परन्तु इसका एक नेगेटिव प्रभाव भी पड़ता है और वह ये है कि पृथ्वी की सतह पर पड़ने वाले प्रकाश का कुछ भाग अवरक्त प्रकाश के रूप में परावर्तित होकर वापस चला जाता है।
- लेकिन कार्बन डाइऑक्साइड के अणुओं में इन अवरक्त विकिरणों को सोख लेने की क्षमता होती है।
- अतः वायुमंडल में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड किसी कम्बल की तरह इन्हे संग्रहित कर लेता है।
- जिसके कारण वायुमंडल का तापमान बढ़ जाता है जिसे ग्रीन हाऊस प्रभाव कहते है।
ग्रीन हाउस गैसों के स्रोत:
- ग्रीन हाऊस प्रभाव के लिए प्रमुख कार्बन डाइऑक्साइड गैस है इसे बनने में विभिन्न स्त्रोत है।
- जैसे ईंधन, कोयल, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस आदि के जलने से पेट्रोलियम से चलने वाले स्वचालित वाहनों इसके अलावा लकड़ी के जलने से अत्यधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड गैसे निकलती है।
ग्रीन हाउस क्या है?
- ठंडे क्षेत्रों जैसे ध्रुवी क्षेत्र, या पर्वतीय क्षेत्र जहां ऊंचाई के कारण तापमान माइनस में रहता है और वह फसल उगाने जैसे कि ग्रीष्म काल वाली फसल उगाने में उपयोगी है।
- जहां अत्यधिक ठंड पड़ती है वह एक कांच या प्लास्टिक का आवरण छत तैयार कर लिया जाता है।
- जिससे सूर्य से आने वाली लघु तरंगे उसमे प्रवेश कर जाती है। लेकिन बाहर नहीं जा पाती और पौधों की इससे गर्मी मिलती है और फसल तैयार हो जाता है।
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